Sacchi Prarthana Hindi Religious Story || सच्ची प्रार्थना हिंदी धार्मिक कहानी 

सन्त रामदास जी एक बहुत जाने माने संत थे , वे जब प्रार्थना करते थे तो कभी उनके होंठ नही हिलते थे।

     शिष्यों ने एक बार इसी विषय में उनसे पूछा - गुरुवर, हम प्रार्थना करते हैं, तो होंठ हिलते हैं पर आपके होंठ नहीं हिलते ? आप पत्थर की मूर्ति की तरह खडे़ हो जाते हैं। आप कैसे फिर अपनी प्रार्थना कर लेते है ।

    क्योंकि, अगर आप अन्दर से भी कुछ कहेंगे, तो होंठो पर थोड़ा कंपन आ ही जाता है। चेहरे पर बोलने का भाव आ जाता है। लेकिन आपके चेहरे पर ना ही कोई भाव आता है ना ही आपके होठ हिलते है ।

  तब सन्त रामदास जी ने मुस्कुरा कर कहा - मैं एक बार राजा के महल से गुजर रहा था तब मैंने राजा के सामने एक बदहाल भिखारी को देखा।

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उस भिखारी के कपड़े फटे हुए थे , जीर्ण - जर्जर देह थी जैसे बहुत दिनो से भोजन न मिला हो, शरीर सूख कर कांटा हो गया। बस आंखें ही दीयों की तरह जगमगा रही थी। बाकी जीवन जैसे सब तरफ से विलीन हो गया हो। वह कैसे खड़ा था यह भी आश्चर्य था? लगता था अब गिरा -तब गिरा ।

    राजा ने उससे पूछा - बोलो क्या चाहते हो हमारे दरबार से ?

    उस भिखारी ने जो कहा वो बहुत ही दिल को छु लेने वाली बात थी , उसने कहा - अगर आपके द्वार पर खड़े होने पर भी मेरी मांग का पता नहीं चलता, तो कहने की कोई जरूरत नहीं।


राजा उस भिखारी की बात पर बहुत शर्मिंदा हुआ ।

सन्त रामदास जी ने कहा - उसी दिन से मैंने प्रार्थना बंद कर दी। मैं परमात्मा के द्वार पर खड़ा हूं। वह देख लेगें । मैं क्या कहूं?

अगर मेरी स्थिति कुछ नहीं कह सकती, तो मेरे शब्द क्या कह सकेंगे ?अगर वह मेरी स्थिति नहीं समझ सकते, तो मेरे शब्दों को क्या समझेंगे?

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