एक गाँव में एक बड़े महान और ज्ञानी संत रहते थे , वे बड़े अजीबोगरीब तरीके से लोगो को सटीक बात समझाते थे ।
ऐसा ही दिलचस्प किस्सा एक बार घटित हुआ जो मैं आपको आगे सुनाने जा रहा हूँ .....
हुआ ऐसा की एक बार स्वामीजी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगाई, भिक्षा दे माई ।
घर से उत्सुकता से एक महिला बाहर आई। उसने संत जी को प्रणाम किया और झोली में भिक्षा डाली और पूछा , ‘महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए ‘ स्वामीजी बोले, ‘आज नहीं, मैं कल उपदेश दूँगा।’
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दूसरे दिन स्वामीजी ने फिर से उस घर के सामने आकर भिक्षा के लिए आवाज दी, ‘भिक्षा दे माई !’
उस दिन उस महिला ने खीर बनाई थी, जिसमें बादाम-पिस्ते जैसे महंगे मेवे डाले थे , वह खीर का प्याला लेकर बाहर आई और बोली , स्वामीजी ,आज मैंने बहुत प्यार और मेहनत से खीर बनाई है |
स्वामीजी ने अपना कमंडल आगे कर दिया। वह स्त्री जब खीर डालने लगी तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए।
वह बोली, ‘महाराज, यह कमंडल तो गंदा है।’ स्वामीजी बोले, ‘हाँ, गंदा तो है, किंतु खीर इसमें डाल दो।’ स्त्री बोली, ‘नहीं महाराज, तब तो खीर खराब हो जाएगी।
दीजिए, यह कमंडल, मैं इसे शुद्ध कर लाती हूँ।’ स्वामीजी बोले, ‘मतलब जब यह कमंडल साफ हो जाएगा, तभी खीर डालोगी न?”
स्त्री ने कहा, ‘जी महाराज।’ स्वामीजी बोले, ‘मेरा भी यही उपदेश है।
मन में जब तक चिंताओं का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्कारों का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।’ यदि उपदेशामृत पान करना है, तो सबसे पहले अपने मन को शुद्ध करना चाहिए।
कुसंस्कारों और बुराइयों का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनंद की प्राप्ति होती है ।
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