कर्म ही सच्चा धर्म हिंदी धार्मिक कहानी
एक बहुत बड़ी फैक्ट्री के मालिक थे पर उनके जीवन में ऐसा कुछ घटा जिसके बाद वे अपना सारा कारोबार बंद करके प्रभु की भक्ति में लग गये और सन्त बन गए।
अब लोग उन्हें संत श्री के नाम से जानने लगे अब वह सिर्फ प्रभु का गुणगान करते और शाम को बैठते और अपने अनुयायियों को प्रवचन देते थे ।
एक दिन उन्होंने वो प्रसंग बताया जिसके कारण वे व्यापारी से सन्यासी बन गये।
संतश्री ने कहा कि “एक दिन जब मैं अपनी फैक्ट्री में बैठा था उसी समय एक कुत्ता घायल अवस्था में वहां आया , उसे किसी गाड़ी ने कुचल दिया था जिस से उसके तीन पैर टूट गए थे और वो सिर्फ एक पैर से घिसटते घिसटते फैक्ट्री तक आ गया ।
मुझे बहुत तरस आई और मैंने सोचा कि उस कुत्ते को किसी जानवरों के अस्पताल ले जाऊं. मगर फिर अस्पताल के लिए तैयार होते समय मेरे दिमाग़ में एक बात आई और मैं रुक गया।
मैंने सोचा कि अगर प्रभु हर किसी को खाना देता है तो मुझे अब देखना है कि इस कुत्ते को अब कैसे खाना मिलेगा। रात तक दूर बैठे उसे मैं देखता रहा और फिर अचानक मैंने देखा कि एक दूसरा कुत्ता फैक्टरी के दरवाज़े से नीचे घुसा और उसके मुह में रोटी का एक टुकड़ा था । उस कुत्ते ने वो रोटी उस कुत्ते को दी और घायल कुत्ते ने किसी तरह उसे खाया। फिर ये रोज़ का काम हो गया। वो कुत्ता वहां आता और उसे रोटी देता या कोई और खाने की चीज़ और वो घायल कुत्ता ऐसे खा खा के चलने के क़ाबिल बन गया।
मुझे ये देखकर अपने प्रभु पर अब ऐसा भरोसा हो गया कि मैंने अपनी फैक्ट्री बंद की । व्यापार पर ताला लगाया और प्रभु की राह में निकल पड़ा । और संत बनने के बाद भी मेरे पास पैसे उसी तरह किसी न किसी बहाने आते रहे जैसे पहले आते थे। ठीक वैसे जैसे उस कुत्ते को दूसरा कुत्ता रोटी खिलाता था रोज़”।
संतश्री की ये कहानी सुनकर उनका एक अनुयायी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा । संतश्री जी ने जब वजह पूछी । तो उसने कहा कि
आपने ये तो देख लिया संतश्री जी कि प्रभु ने उस कुत्ते का पेट भरा मगर आप ये न समझ सके कि उन दो कुत्तों में से बड़ा कुत्ता कौन है? जो खाना खा रहा है वो बड़ा है या जो कुत्ता उसे ला कर खिला रहा है वो बड़ा है? आप खाना खाने वाले घायल कुत्ते बन गए और अपना कारोबार बंद कर दिया।
जबकि पहले आप खाना खिलाने वाले कुत्ते थे क्यूंकि आपकी फैक्ट्री से हज़ारों लोगों को खाना मिलता था। आप खुद बताईये कि पहले जो काम आप कर रहे थे वो प्रभु की नज़र में बड़ा था या अब जो कर रहे हैं वो?”
संतश्री जी की आँखें खुल गयी। उन्हें समझ आ गया है की सच्ची भक्ति क्या होती है । सिर्फ प्रभु की भक्ति ही व्यक्ति का सही धर्म नही है बल्कि कर्म करते हुए मानवता की सेवा करना भी सही धर्म में है ।
संतश्री ने दुसरे ही दिन अपना कारोबार फैक्टरी फिर से शुरू कर दी और संतश्री जी फिर से व्यवसायी बन गए।
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