मित्रो Niks Story Teller Website पर आपका फिर से दिल से स्वागत है , आज की कहानी है सुख भोगने वाले कौवे की दुर्गति बहुत ही ज्ञान भरी कहानी ।

 एक बार एक नदी में बड़े से हाथी की लाश बही जा रही थी। एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा । अपने आहार को देखकर वो तुरंत उस पर आ बैठा। जी भर के मांस खाया और फिर नदी का जल पिया। 

लालची कौवे की कहानी

 

 इस बड़ी सी दावत का वो अकेला मालिक था पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। वह सोचने लगा, अहा! यह तो अत्यंत सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं? 

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कौआ नदी के साथ बहने वाली उस हाथी की लाश के ऊपर कई दिनों तक बैठा रहा। जब उसकी इच्छा होती मांस खा लेता और प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता। समय बीतता गया और कौवा भी मोटा हो गया , बहुत दिनों तक वो उड़ा भी नही था इसलिए धीरे धीरे वो उड़ना भी भूलने लगा ।

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एक दिन नदी अपने  छोर महासागर में मिल गयी । नदी का सागर से मिलना ही अंतिम लक्ष्य था, किंतु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई । चार दिन के आनंद के बाद उसकी किस्मत ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न ही पीने का मीठा जल न ही रहने का कोई ठिकाना ।

चारो तरफ बस समुन्द्र का नमकीन जल । ना कोई पेड़ पौधे ना ही कोई हरियाली । मरे हुए हाथी का मांस भी अब ख़त्म हो चूका था । बिचारा कौवा अब बेबस और लाचार था । अब वो ठीक से उड़ भी नही पा रहा था ।हालाकि उसने कोशिश कि पर सागर का कोई पार ही नही था ।

आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर गया। एक विशाल मगरमच्छ उसे निगल गया।

दोस्तों इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि सिर्फ अच्छे आहार और आश्रय को ही सच्चा सुख नही मानना चाहिए क्योकि इनके भोगते भोगते हम ऐसी जगह पर पहुँच जाते है जहा से लौटना बहुत मुश्किल हो जाता है

शारीरिक सुख भोगने वाले मनुष्यों की भी गति उसी कौए की तरह होती है, जो आहार और आश्रय को ही परम गति मानते हैं और अंत में अनन्त संसार रूपी सागर में समा जाते है।

और किसी ने बहुत खूब कहा है :-

जीत किसके लिए, हार किसके लिए

ज़िंदगीभर ये तकरार किसके लिए....

जो भी आया है वो जायेगा एक दिन

फिर ये इतना अहंकार किसके लिए.

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